शक्ति और क्षमा
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
......विषहीन, विनीत, सरल हो ।...
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है.
--रामधारी सिंह "दिनकर"
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
......विषहीन, विनीत, सरल हो ।...
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है.
--रामधारी सिंह "दिनकर"
शानदार पोस्ट!! बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना। शुभकामनायें।
ReplyDeletebeautiful poem
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