Tuesday, 3 May 2011

बचपन बेटी बनकर आया --सुभद्राकुमारी चौहान

मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी बिटिया मेरी
नंदन-वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी
“माँ ओ!” कह कर बुला रही थी, मिट्टी खाकर आयी थी
कुछ मुँह में, कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लाई थी
मैनें पूछा “ये क्या लाई?”, बोल उठी वह “माँ काओ”
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से, मैनें कहा “तुम ही खाओ”
पाया मैनें बचपन फिर से, बचपन बेटी बनकर आया
उसकी मंजुल-मूर्ती देखकर, मुझमें नव-जीवन आया...........

                                              --सुभद्राकुमारी चौहान

3 comments:

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  2. महाकवियत्री की रचना की अच्छी प्रस्तुति

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  3. ललित जी
    रचना पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार अच्छी प्रस्तुति

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