Tuesday, 24 May 2011

माँ तो सबकी एक-जैसी होती है

माँ तो सबकी एक-जैसी होती है

बस से उतरकर जेब में हाथ डाला। मैं चौंक पड़ा मै दन्ग रह गया ।मेरी जेब कट चुकी थी। जेब में था भी क्या? कुल मिलाकर नौ रुपए और एक खत, जो मैंने अपनी माँ को लिखा था किमेरी नौकरी छूट गई है; अभी पैसे नहीं भेज पाऊँगा। तीन दिनों से वह पोस्टकार्ड जेब में पड़ा था। पोस्ट करने को मन ही नहीं कर रहा था। नौ रुपए जा चुके थे। यूँ नौ रुपए कोई बड़ी रकम नहीं थी, लेकिन जिसकी नौकरी छूट चुकी हो, उसके लिए नौ रुपए नौ सौ से कम नहीं होते। कुछ दिन गुजरे। माँ का खत मिला। पढ़ने से पूर्व मैं सहम गया। जरूर पैसे भेजने को लिखा होगा।लेकिन, खत पढ़कर मैं हैरान रह गया। माँ ने लिखा था—“बेटा, तेरा पचास रुपए का भेजा हुआ मनीआर्डर मिल गया है। तू कितना अच्छा है रे!पैसे भेजने में कभी लापरवाही नहीं बरतता।मैं इसी उधेड़-बुन में लग गया कि आखिर माँ को मनीआर्डर किसने भेजा होगा? कुछ दिन बाद, एक और पत्र मिला। चंद लाइनें थींआड़ी-तिरछी। बड़ी मुश्किल से खत पढ़ पाया। लिखा था—“भाई, नौ रुपए तुम्हारे और इकतालीस रुपए अपनी ओर से मिलाकर मैंने तुम्हारी माँ को मनीआर्डर भेज दिया है। फिकर न करना।माँ तो सबकी एक-जैसी होती है न। वह क्यों भूखी रहे?…
 तुम्हाराजेबकतरा भाई




2 comments:

  1. माँ के प्रति सम्वेदनाएं सभी की समान होती है। मार्मिक आलेख!!

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