चन्द्रशेखर,
तुम इस आज़ादी के लिए
अपना बलिदान दे गये,
भगतसिंह,
तुम यूँ ही अपनी जान दे गये।
देखो तुम्हारे खवाबों को इन्होंने
शीशे की तरह
चटका दिया है,
तुम जिस देश के लिए
फाँसी पर लटक गये
इन्होंने उस देश को
फाँसी पर लटका दिया है।
सार्थक पोस्ट है ....इसी के संदर्भ में आप सभी से गुजारिश करना चाहूँगा की ...4 जून को शहीदों के अपमान का बदला लेने का दिन है ...आओ दिली में पहुंचे ओर ...इन गद्दारों को सबक सिखाएं ..अब बातो से कुछ नही होने वाला है ....मैदान में उतरो ....ओर जंग लड़ो ...अब नही बदले तो बहुत देर हो चुकी होगी |
लालित्य संग्रह अनुपम है … बधाई ! प्रस्तुत रचना संक्षिप्त अवश्य है लेकिन बहुत बड़ी व्यथा कह रही है - तुम जिस देश के लिए फांसी पर लटक गये इन्होंने उस देश को फांसी पर लटका दिया है…
सार्थक पोस्ट है ....इसी के संदर्भ में आप सभी से गुजारिश करना चाहूँगा की ...4 जून को शहीदों के अपमान का बदला लेने का दिन है ...आओ दिली में पहुंचे ओर ...इन गद्दारों को सबक सिखाएं ..अब बातो से कुछ नही होने वाला है ....मैदान में उतरो ....ओर जंग लड़ो ...अब नही बदले तो बहुत देर हो चुकी होगी |
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति!!
ReplyDeleteसही कहा है आपने!!
प्रिय बंधुवर ललित 'अटल' जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
लालित्य संग्रह अनुपम है … बधाई !
प्रस्तुत रचना संक्षिप्त अवश्य है लेकिन बहुत बड़ी व्यथा कह रही है -
तुम जिस देश के लिए
फांसी पर लटक गये
इन्होंने उस देश को
फांसी पर लटका दिया है…
हृदय से बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
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